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तत्सूर्य्य॑स्य देव॒त्वं तन्म॑हि॒त्वं म॒ध्या कर्त्तो॒र्वित॑त॒ꣳ सं ज॑भार। य॒देदयु॑क्त ह॒रितः॑ स॒धस्था॒दाद्रात्री॒ वास॑स्तनुते सि॒मस्मै॑ ॥३७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तत्। सूर्य्य॑स्य। दे॒व॒त्वमिति॑ देव॒ऽत्वम्। तत्। म॒हि॒त्वमिति॑ महि॒ऽत्वम्। म॒ध्या। कर्त्तोः॑। वित॑तमिति॑ विऽत॑तम्। सम्। ज॒भा॒र॒ ॥य॒दा। इत्। अयु॑क्त। ह॒रितः॑। स॒धस्था॒दिति॑ स॒धऽस्था॑त। आत्। रात्री॑। वासः॑। त॒नु॒ते॒। सि॒मस्मै॑ ॥३७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:37


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर के विषय में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जगदीश्वर अन्तरिक्ष के (मध्या) बीच (यदा) जब (हरितः) जिन में पदार्थ हरे जाते उन दिशाओं और (विततम्) विस्तृत कार्यजगत् को (सम्, जभार) संहार कर अपने में लीन करता (सिमस्मै) सबके लिये (रात्री) रात्री के तुल्य (वासः) अन्धकाररूप आच्छादन को (तनुते) फैलाता और (आत्) इसके अनन्तर (सधस्थात्) एक स्थान से अर्थात् सर्व साक्षित्वादि से निवृत्त हो के एकाग्र (इत्) ही (अयुक्त) समाधिस्थ होता है, (तत्) वह (कर्त्तोः) करने को समर्थ (सूर्यस्य) चराचर के आत्मा परमेश्वर का (देवत्वम्) देवतापन (तत्) वही उसका (महित्वम्) बड़प्पन तुम लोग जानो ॥३७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! आप लोग जिस ईश्वर से सब जगत् रचा, धारण, पालन और विनाश किया जाता है, उसी को और उसकी महिमा को जान के निरन्तर उसकी उपसाना किया करो ॥३७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरविषयमाह ॥

अन्वय:

(तत्) (सूर्यस्य) चराचरात्मनः परमेश्वरस्य (देवत्वम्) देवस्य भावम् (तत्) (महित्वम्) महिमानम् (मध्या) मध्ये। अत्र विभक्तेराकारादेशः। (कर्त्तोः) कर्तुं समर्थस्य (विततम्) विस्तृतं कार्यं जगत् (सम्) (जभार) जहार हरति। अत्र हस्य भः। (यदा) (इत्) (अयुक्त) समाहितो भवति (हरितः) ह्रियन्ते पदार्था यासु ता दिशः (सधस्थात्) समानस्थानात् (आत्) अनन्तरम् (रात्री) रात्रीवत् (वासः) आच्छादनम् (तनुते) विस्तृणाति (सिमस्मै) सर्वस्मै ॥३७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! जगदीश्वरोऽन्तरिक्षस्य मध्या हरितो यदा विततं च सं जभार सिमस्मै रात्री वासस्तनुते। आत्सधस्थादिदयुक्त तत्कर्त्तोः सूर्यस्य देवत्वं तन्महित्वं यूयं विजानीत ॥३७ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! भवन्तो येनेश्वरेण सर्वं जगद्रच्यते ध्रियते पाल्यते विनाश्यते च तमेवास्य महिमानं विदित्वा सततमेतमुपासीरन् ॥३७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! ज्या ईश्वराने हे जग निर्माण केलेले आहे आणि ते तो धारण करतो, पालन करतो व त्याचा विनाशही करतो त्या ईश्वराची महिमा जाणून त्याचीच निरंतर उपासना करा.